Marziya Shakir 4 Year Old Street Photographer Shoots Holi, a photo by firoze shakir photographerno1 on Flickr.
होली के त्योहार से शिशिर ऋतु की समाप्ति होती है तथा वसंत ऋतु का आगमन होता है। प्राकृतिक दृष्टि से शिशिर ऋतु के मौसम की ठंडक का अंत होता है और बसंत ऋतु की सुहानी धूप पूरे जगत को सुकून पहुंचाती है। हमारे ऋषि
मुनियों ने अपने ज्ञान और अनुभव से मौसम परिवर्तन से होने वाले बुरे प्रभावों को जाना और ऐसे उपाय बताए जिसमें शरीर को रोगों से बचाया जा सके।
आयुर्वेद के अनुसार दो ऋतुओं के संक्रमण काल में मानव शरीर रोग और बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार शिशिर ऋतु में शीत के प्रभाव से शरीर में कफ की अधिकता हो जाती है और बसंत ऋतु में तापमान बढऩे पर कफ के शरीर से बाहर निकलने की क्रिया में कफ दोष पैदा होता है,
जिसके कारण सर्दी, खांसी, सांस की बीमारियों के साथ ही गंभीर रोग जैसे खसरा, चेचक आदि होते हैं। इनका बच्चों पर प्रकोप अधिक दिखाई देता है।
इसके अलावा बसंत के मौसम का मध्यम तापमान तन के साथ मन को भी प्रभावित करता है। यह मन में आलस्य भी पैदा करता है।
इसलिए स्वास्थ्य की दृष्टि से होलिकोत्सव के विधानों में आग जलाना, अग्नि परिक्रमा, नाचना, गाना, खेलना आदि शामिल किए गए। अग्नि का ताप जहां रोगाणुओं को नष्ट करता है, वहीं खेलकूद की अन्य क्रियाएं शरीर में जड़ता
नहीं आने देती और कफ दोष दूर हो जाता है। शरीर की ऊर्जा और स्फूर्ति कायम रहती है। शरीर स्वस्थ रहता है। स्वस्थ शरीर होने पर मन के भाव भी बदलते हैं। मन उमंग से भर जाता है और नई कामनाएं पैदा करता है। इसलिए बसंत ऋतु को मोहक, मादक और काम प्रधान ऋतु माना जाता है।