Friday, September 27, 2013

किसको सुनाऊं हाल दिल-ऐ-बेकरार का बुझता हुआ चराग हूँ अपने मज़ार का

ऐ काश भूल जाऊं मगर भूलता नहीं
किस धूम से उठा था जनाज़ा बहार का
ये दुनिया ये महफिल..

heer ranjha
kaifi azmi

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